Pondicherry Yatra, an Inner Journey – I     

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Editor’s note:

We are getting ready to host a national seminar – ‘Experiencing the Spirit of India through Cultural and Heritage Tourism. In connection with that, we are delighted to share a travelogue. The present piece is penned in Hindi by one of our regular contributors to Renaissance, Dr. Charan Singh Kedarkhandi.

But this is a travelogue with a difference. It takes you to the inner dimension of what conscious travel can mean. When we are not merely a tourist how do we open to experiencing the spirit of a place, its history and culture? Readers will find the author’s account of Pondicherry, Sri Aurobindo’s “cave of tapasya” a deeply inspiring one.

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पॉन्डिचेरी डायरी: पहली क़िस्त

बंगाल की खाड़ी के किनारे बसे इस नगर की क़िस्मत बदली 4 अप्रैल 1910 को जब अपराह्न 4 बजे राजनैतिक जीवन से बाहरी तौर पर सन्यास लेकर उत्तर योगी के रूप में श्री अरविन्द के पावन चरण पॉन्डिचेरी (अब पुडुचेरी) की धरती पर पड़े।

उससे पहले पॉन्डिचेरी (जिसका शाब्दिक अर्थ “नया कस्बा” है) एक शांत और अल्पज्ञात तटीय कस्बा ही था, sleepy and nondescript.

श्री अरविन्द ने इस पावन भूमि को अपनी तपस्या गुफ़ा कहा । और उन्होंने अपनी आध्यात्मिक दृष्टि से यह भी देखा कि प्राचीन काल में इस स्थान को वेदपुरी कहा जाता था । और ऐसा कहा जाता है कि जिस जग़ह इस कालखंड में श्री अरविन्द आश्रम की मुख्य इमारत है, ठीक उसी जग़ह प्राचीन काल में महर्षि अगस्त्य का प्रसिद्ध आश्रम था।

एक साधक ठोस रूप से यहाँ के वातारवण में आध्यात्मिक ऊर्जा के स्पंदन महसूस करता है। लेकिन यदि आप साधना वृति के न भी हों परन्तु प्राकृतिक सौंदर्य और सुव्यवस्था के लिए आपके मन में सम्मान हो, तो भी आपके लिए यहाँ बहुत कुछ है।

लगभग हर गली में सुंदर दरख़्तों की पंक्तिबद्ध क़तारें, उपवन और पुष्प और सजावटी लताएं हैं, आधुनिक इमारतों के बीच भी सुरक्षित लकड़ी के पारंपरिक नक्काशी वाले मकान हैं।

अपने घर के आगे सुबह सुबह सफाई के उपरांत चाक से कोलम के पवित्र शुभ सूचक प्रतीक बनातीं स्त्रियां हैं, बेहतरीन फ्रांसीसी दौर की स्थापत्य कला है, रोमां रोलां पुस्तकालय सहित दूसरे पुस्तकालय और संग्रहालय हैं, कॉफी हाउस , हेरिटेज बिल्डिंग्स हैं और सुबह शाम हवाखोरी के लिए सुंदर “beach road” है। बढ़ते नगरीकरण के कारण सफ़ाई एक चनौती जरूर बन रही है लेकिन अभी भी देश के कई नगरों की तुलना में पोंडी को आप सीधे सरल आदमकद लोगों का बहुत स्वच्छ नगर कह सकते हैं।

दक्षिण भारत की संस्कृति के अनुरूप प्रत्येक मंदिर के बाहर भव्य और मनोहारी गोपुरम बने हुए हैं जिनमें अलग-अलग भाव भंगिमाओं के साथ ध्यानरत देवप्रतिमाओं को बड़ी देर तक निहारने का मन करता है।

गजरे की जग़ह स्त्रियां अपने बालों में रोज़ ताज़े चमेली के फूलों की लड़ियाँ सजातीं हैं; ये लड़ियाँ हर गली को खुशबू का मायका बना देतीं हैं। गर्मी लगे तो आप नारियल का पानी पीकर हमारे समय में तमिल के सबसे बड़े कवि और श्री अरविन्द के अनुयायी सुब्रमण्यम भारती के नाम पर बने भारती पार्क में ठंड और बोध उधार ले सकते हैं।

और पोंडी की कॉफ़ी और चाय का स्वाद! एक बार पीकर आप उसके दीवाने हो जाते हैं। घंटे भर तक उबालकर स्वादिष्ट पत्ती के साथ अनुष्ठान की तरह बार बार फेंटकर उसे प्याले में आपको पेश किया जाता है। चाय के नाम पर अपने प्रदेश में (या उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में) हम जो यात्री/पर्यटक को जो परोसते हैं वह इस चाय की pale shadow भी नहीं है!



पोंडी अभी भी साईकल के सहारे अपना जीवन चक्र चलाता है, यद्यपि ईर्ष्यालु सौतन की तरह तेज़ी से स्कूटी उसकी जग़ह ले रही है लेकिन कुछ और सालों तक साईकल की धमक कायम रहेगी। मुझे ख़ुशी होगी अगर ये “कुछ और साल” अपना विस्तार सदी में कर दें। आपको गली गली बच्चे और युवा ही नहीं, 80 और 90 साल की उम्र तक के लोग साईकल चलाते दिख जाएंगे। आश्रम के कई उम्रदराज़ युवा आज भी केवल साईकल का उपयोग करते हैं।

पॉन्डिचेरी डायरी: दूसरी क़िस्त

समुद्र के जिगर में हैं एक हज़ार कहानियाँ. . . दो चार सुनेंगे आप?

आइए शुरू करते हैं. . .

बहुत पहले से ही पॉन्डिचेरी आने वालों के लिए एक प्रबल आकर्षण रहा है बीच (beach) यानी समुद्री किनारा, सैलानी के लिए  बीच का अर्थ है घूमने, टहलने, स्वास्थ्य लाभ लेने, खाना खाने और आनंद मनाने की जग़ह।

लेकिन समुद्री किनारे के और भी गहरे अर्थ होते हैं।

श्री अरविन्द आश्रम के शारीरिक शिक्षा विभाग के प्रमुख श्री प्रणव कुमार भट्टाचार्य ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि एक बार एक युवा पॉन्डिचेरी घूमने आया और सभी जग़ह घूमने के बाद श्री अरविन्द से मिला। जब श्री अरविन्द ने उससे पूछा कि कौन सी चीज़ है जो उसे पोंडी में सबसे अच्छी लगी तो उसने कहा — समुद्र। श्री अरविन्द ने फ़िर पूछा, समुद्र क्यों? इस पर वह उत्तर न दे सका। अपने प्रश्न का स्वयं ही उत्तर देते हुए श्री अरविन्द ने कहा — Because of the Presence/ भव्य उपस्थिति या विशालता के कारण।

समुद्र अनादि, अगाध, असीम और अनंत है, उसके यही गुण मनुष्य को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। मनुष्य के भीतर का अनादि और अनंत समुद्र के साथ जुड़ना चाहता है, एकाकार होना चाहता है। खारे पानी को अपने चेहरे पर महसूस करने की बेचैनी के पीछे यही अभीप्सा छिपी हुई है. . .

समुद्र के किनारे जाकर ही आभास होता है कि न केवल सागर में बूँद है बल्कि बूँद (मनुष्य शरीर) मे भी सागर ही समाया हुआ है! बूँद ख़ुद को बूँद न समझे, उसके बिना सागर का कोई अस्तित्व नहीं है।

अपनी कविता सावित्री में श्री अरविन्द इस बात को इस तरह समझाते हैं:

All ocean lived within a wandering drop,
A time-made body housed the Illimitable
To live this Mystery our souls came here.

~ Sri Aurobindo, Savitri, CWSA, Vol. 33, p.101

अर्थात,

भटकती बूँद के भीतर होता है सागर
और कालबद्ध शरीर के भीतर बसता है असीम
आती हैं आत्माएं हमारी धरा पर जीने यह रहस्य ।

हम बूँद नहीं हैं, सागर हैं, क्षुद्र नहीं हैं विशाल हैं, कालबद्ध नहीं हैं — देशकाल की सीमाओं को लाँघने की सामर्थ्य से भरे हुए लोग हैं। शरीर कालबद्ध, time-made है लेकिन शरीरी, illimitable, देशकाल से परे है ।

इसलिए समुद्र के किनारे आकर पहला सबक होता है विशालता का, समुद्र के साथ-साथ स्वयं की विशालता का! रिश्तों में, जीवन मे, सोच में, विचारधारा में — जहाँ जहाँ संकीर्णता और स्वार्थ की तंगदिली है, वहाँ-वहाँ अभाव, संघर्ष और अंतहीन संताप है। जहाँ जहाँ उदारता है, विशालता है, समझ का विस्तार है, वहाँ शांति, सद्भाव और आनंद है।

अनजाने में भी कोई हम पर जरा सा धक्का दे दे तो हम मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं। कभी सोचिए समुद्र के साथ हम क्या क्या नहीं करते हैं, कौन सी गन्दगी है जो उसकी ओर नहीं उछालते हैं? हमने उसके जिगर में कूड़े के महानगर बसा लिए हैं, उसका जलीय जीवन समाप्त कर दिया है। समुद्र ही नहीं, शार्क, डॉल्फिन, व्हेल, टूना आदि भी आक्रोशित हैं और इसके बावजूद वह सब कुछ चुपचाप सोख और सह लेता है।

पॉन्डिचेरी बीच पर जाकर मेरी नज़र सबसे पहले उस जग़ह को खोजती है जहाँ पर 4 अप्रैल 1910 को अपराह्न 4 बजे श्री अरविन्द डुप्लेक्स जहान से उतरे थे। जानकार बताते हैं कि तब आज की तुलना में समुद्र एक-दो मील पीछे था और कम पानी के कारण श्री अरविन्द के मेजबान मोनी और शंकर चेटीयार नाव के सहारे जहाज पर पहुँचे थे।

शायद कम लोग जानते हैं कि देशबंधु चित्तरंजन दास राजनेता और बैरिस्टर के साथ साथ बंगला के शानदार कवि भी थे। उनकी कविता “सागर संगीत” का अंग्रेजी अनुवाद “Song of the Sea” के नाम से स्वयं श्री अरविन्द ने किया है जो सम्पूर्ण रचनावली के 5वें ग्रंथ TRANSLATIONS में संकलित है । आश्रम की कड़की के दिनों में देशबंधु ने इस अनुवाद के लिए श्री अरविन्द के पास एक हज़ार रुपये भेजे थे ।

बड़ी अनूठी कविता है “सागर संगीत”! कभी पढियेगा।

गूगल या पुस्तकालय में नहीं, समुद्र के किनारे आकर! शब्दों के सहारे नहीं, असीम लहरों को अपने चेहरे पर महसूस करके, उनका उतार चढ़ाव पढ़कर, उनका शब्दनाद भाँपकर।

क्या क्या नहीं बोलती हैं समुद्र की लहरें! कौन सा गीत है जो अनछुआ है इन उठती, बैठती, शांत और आक्रोशित मौजों के लिए ! समुद्र के किनारे खड़े होकर यही बात अपनी कविता Dover Beach में Mathew Arnold हमें समझाते हैं।

इतिहास किसी चलचित्र की तरह सामने आता है समुद्र के किनारे आकर। लहरों की हलचल हमें कालजयी खोजों, अभियानों, यात्राओं का पुनर्पाठ कराती है। यहाँ लाड़ है, दुलार है, प्यार और पुचकार है।

समुद्री किनारे पर आँसू और अवसाद है ( देखिये J.M. Synge की पुस्तक – Riders to the Sea), जीवट और जिजीविषा का आमंत्रण है (हेमिंग्वे की पुस्तक – The Old Man and the Sea), ललकार और यायावरी आमंत्रण है (Tennyson की कविता – Ulysses)। कभी न ख़त्म होने वाला आनंद है तो हमेशा रुला देने वाला विषाद भी है । समुद्र वास्तविक अर्थ में टाइटैनिक है इसलिए हर उस चीज़ को निगल जाता है, जो ‘टाइटैनिक’ होने का दावा करती है।

आदमी इस सबक को याद रखे !

कुछ युवा समुद्री तट पर प्रेम की कहानियाँ लिखना चाहते हैं, कोई उन्हें समझाए कि समुद्री तट शूरता की कहानियों को रचने के लिए होता है।

डाइनिंग रूम का समय हो गया था, इसलिए समुद्र के पानी को प्रणाम कर लौट आया. . .

CONTINUED IN PART 2

~ Photos by the author, Charan Singh Kedharkhandi
~ Cover image design: Beloo Mehra

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