A Vedic Hymn to Agni, in Hindi Poetry

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Editor’s note: This stuti or hymn to Agni, the divine will-force, the primordial aspiration hidden in all existence, is a poetic rendition in Hindi of a Rig Vedic Sukta.

For several decades, Dr. Murildhar Chandniwala, a renowned Sanskrit and Hindi scholar, has been translating and re-expressing Vedic mantras in Hindi poetry, thus facilitating the deep truth and wisdom of the Vedic vision reach a greater number of seekers. He has published several volumes of his Vedic poetry. Presented below is his Hindi rendition of Sukta 1 from Mandala 2 of Rig Veda.

The Rishi of this hymn to Agni Devatā is Gṛtsamada Bhārgava Saunaka. This whole sukta of 16 mantras was also translated by Sri Aurobindo in English, which interested readers may read HERE. We include below only the first mantra of the sukta in Sanskrit.

Flipbook: 
Agni in the Veda

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Artwork by Ritam Upadhyay

त्वमग्ने द्युभिस्त्वमाशुशुक्षणिस्त्वमद्भघस्त्वमश्मनस्परि ।
त्वं वनेभ्यस्त्वमोषधीभ्यस्त्वं नृणां नृपते जायसे शुचिः ॥१॥

अग्नि-स्तवन

ज्योतिर्मय लोक से आये हो,
इसीलिये तो देदीप्यमान हो तुम।
हे अग्नि! तुम जल में भी हो, पाषाण में भी।
तुम वन में, ओषधियों में भी व्यक्त हो,
हे पवित्र! तुम ही हमारे नृपति हो ।।1।।

ऋत के आवाहन में तुम हो,
तुम होता हो, तुम ही ऋत्विज् हो।
तुम प्रशास्ता, तुम ही यजमान,
तुम ही ज्योति प्रज्वलित करते हो।
हे अग्नि! तुम अध्वर्यु हो, तुम ब्रह्मा हो।
तुम ही हमारे गृह-स्वामी ।।2।।

हे अग्नि! तुम ही इन्द्र हो,
तुम सज्जनों पर कृपा बरसाने वाले।
तुम विशालता में गये हुए विष्णु हो,
तुम सकल धन के अधिपति ब्रह्मा हो।
हे ब्रह्मणस्पति! तुम धाता हो, प्रजापिता हो ।।3।।

तुम राजा वरुण हो, धृतव्रत हो,
हे अग्नि! तुम ही दुःखहर्ता मित्र हो।
तुम अर्यमा, तुम सत्पति, तुम सबके पालनहार।
विदथ में तुम ही सौभाग्यदाता हो ।।4।।

तुम विश्व के त्वष्टा हो, हमारा आत्मबल हो।
हे मित्रमह! हे प्रिय बन्धु! तुम हमारे हो।
तुम आशुतोष हो, प्रेरणास्रोत हो हमारे,
तुम ही पालक, तुम ही हमारे नायक हो ।।5।।

तुम रुद्र हो, हे अग्नि! तुम ही प्राण हो,
तुम दिव्य तेजस्वी हो, मरुतों का बल हो।
तुम अन्नपति, तुम वायुओं की गति,
तुम शान्ति हो, पूषा हो, तुम ही सम्बल हो ।।6।।

तुम जीवन की शोभा, तुम द्रविणदाता हो,
तुम देव सविता हो, तुम ही रत्नधाता हो।
हे नृपति! तुम भग हो, तुम वसुपति हो,
तुम ही उपास्य हो, एक तुम ही त्राता हो ।।7।।

तुम प्रजापति हो, तुम ही रहते देहगृह में,
ब्रह्माण्ड के राजा हो, वेद-रक्षक हो।
तुम तेजपुञ्ज हो, सब शक्तियों के अधिपति,
तुम सहस्रों तेजस्वियों के प्रतिनिधि हो ।।8।।

तुम पिता हो, यज्ञ में तुम ही पूज्य हो,
तुम भ्राता हो, कर्म में तुम जाज्वल्यमान।
तुम ही प्रजा हो, तुम ही हमारे तारणहार,
तुम सखा हो, संकटमोचक और सुखदाता ।।9।।

तुम ऋभु हो, हृदय में तुम्हें नमस्कार।
तुम अन्न और ऐश्वर्य के अधिष्ठाता हो।
दहन कर देते तुम हमारी दुर्भावनाएँ,
तुम हमारे शिक्षक हो, अनंत-यज्ञ हो ।।10।।

समर्पितों के लिये तुम अदिति हो, हे देव!
तुम यज्ञ की वाणी से समृद्ध भारती हो।
तुम इळा हो शत शरदों के साथ गतिशील,
हे वसुपति! तुम तिमिरनाशिनी सरस्वती हो ।।11।।

हे अग्नि! तुमसे ही इस जीवन का वैभव,
तुमसे श्री-सम्पन्न हम, तुमसे ही सुदर्शन।
तुम ही वह बल हो, जो संकट से तार दे,
सकल पदार्थों में व्याप्त तुम सम्पूर्ण धन हो ।।12।।

हे अग्नि! तुम आदित्यों का मुख हो,
तुम जिह्वा हो पावन चरित्र वालों की।
उदार चेता करते तुम्हारी ही परिचर्या,
ग्रहण करते देव तुम्हें ही दी गई हवि ।।13।।

सब अमर देव, सब निर्दोष चित्त
तुम्हारे ही प्रसाद से होते संसिद्ध।
सब नर तुमसे ही लेते मधुर रस,
तुम ओषधियों के गर्भ में समृद्ध ।।14।।

सब देवों के साथ तुम सबके प्रतिनिधि,
सबके बल से तुम हो सबसे बलशाली,
सर्वत्र पहुँचे हुए तुम अपनी महिमा से,
धरती-आकाश के मध्य में व्याप्त हो ।।15।।

हमें ज्ञान का उज्ज्वल प्रकाश मिले,
अश्वों की शक्ति का हम आह्वान करें।
हम सबको जीवन का सुयश मिले,
विदथ में हम तुम्हारा जयगान करें ।।16।।

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~ Cover image: Beloo Mehra

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